महाराजा अग्रसेन जयंती -2021 पर विशेष । जाने महाराज अग्रसेन कौन थे ?
महाराज अग्रसेन जयंती -2021 : 07 अक्तूबर 2021

महाराज अग्रसेन: महाराजा अग्रसेन व्यापारियों
के शहर अगरोहा के एक महान राजा थे, महाराज वल्लभसेन और माता भगवती
के सबसे बड़े पुत्र थे जिनका जन्म द्वापरयुग के अंतिम चरण में हुआ था यानि लगभग
5145 वर्ष पूर्व । अग्रसेन जी भगवान श्री राम के वंशज थे वो श्रीराम के पुत्र कुश
की 34वीं पीढ़ी के थे । महाराज वल्लभसेन की रियासत प्रतापनगर (खांडव
प्रांत) यानि आज का बल्लभगढ़ (हरियाणा) और राजस्थान तक के क्षेत्र में फ़ैली हुई थी।
बचपन से ही अग्रसेन जी जनता के बीच में लोकप्रिय थे क्योंकि वे करुणानिधि, शांतिप्रिय, धार्मिक और जीव प्रिय राजा थे। उनके
जीवों के प्रति इतना लगाव था की उन्होने अपने राज्य में होने वाली पशु बलि /जीव
हत्याओं पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया था वे हमेशा से पशु बली के विरोधी रहे । जब
अग्रसेन जी केवल 15 वर्ष के थे तो उन्होने पांडवों की तरफ से महाभारत के युद्ध में
भाग लिया था । महाभारत युद्ध में उनके पिता वल्लभसेन, पितामह
भीष्म के बाणों से वीरगति को प्राप्त हो गए थे। और इस शोक की स्थिति में भगवान
श्री कृष्ण ने राजा अग्रसेन को सांत्वना देते हुए दिव्य ज्ञान दिया और अपने पिता का
राजभार संभालने को कहा। जिसके उपरांत महाराजा अग्रसेन ने प्रतापनगर में राजभार संभाला ।
महाराज अग्रसेन का विवाह: अग्रसेन जी का प्रथम
विवाह नागराज कुमुद की पुत्री माधवी से हुआ था । जो की एक स्वयंवर के माध्यम से
सम्पन्न हुआ था । इस स्वयंवर में देवताओं के राजा इंद्रदेव ने भी भाग लिया था ।
लेकिन रानी माधवी ने अग्रसेन को अपने पति के रूप में स्वीकार किया। जिसके कारण
इंद्रदेव नाराज हो गए और उन्होने प्रतापनगर जो की राजा अग्रसेन की रियासत थी में
वर्षा न करने का निर्णय ले लिया । जिसके कारण प्रतापनगर की प्रजा में हाहाकार मच
गया , प्रतापनगर में भयानक सूखा पड़ने लगा जनमानस भूख ,
प्यास से व्याकुल हो गए । ऐसे में महाराज अग्रसेन ने माता लक्ष्मी की आराधना करना
प्रारम्भ कर दिया । माता लक्ष्मी उनकी आराधना से प्रसन्न हो गयी और उनसे कहा यदि
आज नागराज महिरथ की पुत्री सुंदरती से विवाह कर लें तो आपका राज्य फिर से खुशहाल
हो जाएगा । माता लक्ष्मी की आज्ञा पाकर महाराजा अग्रसेन ने सुंदरावती से दूसरा
विवाह रचाया । जिसके बाद देवरिशी नारद ने राजा अग्रसेन और इंद्रदेव के बीच सुलह
करा दी और उनके राज्य में फिर से सुख –शांति लौट आयी । माता लक्ष्मी महाराजा अग्रसेन की कुल देवी थी ।
अग्रोहा धाम की स्थापना :
ऐसा कहा जाता है की महाराज अग्रसेन, रानी
माधवी के साथ अपने नए राज्य की तलाश में पूरे भारत भ्रमण पर निकले। किन्तु जब वे
भ्रमण पर थे तो उन्हे देखा की एक स्थान पर शेरनी एक शावक को जन्म दे रही थी ।
किन्तु शावक ने जन्म के तुरंत बाद अपनी माता पर संकट समझ कर महाराज अग्रसेन के हाथी पर छलांग लगा दी
। महाराज अग्रसेन ने इसे देवयोग समझा और ऋषि –मुनियों की सलाह से इस स्थान पर अपने
राज्य की स्थापना कर दी । और उस स्थान को नाम दिया अग्रेयगण जिसे
बाद में बदल कर अग्रोहा कर दिया गया। अग्रोहा वर्तमान समय में हरियाणा राज्य के हिसार में
पड़ता है। अग्रवाल समाज के लिये अग्रोहा के प्रति विशेष मान्यता है
और अग्रवाल समाज इसे अपने समाज के पांचवें धाम के रूप में पुजाता है। प्राचीन ग्रन्थों
के अनुसार अग्रोहा को ही अग्रवालों का उद्गम स्थल माना गया है वास्तव में अग्रवाल का
अर्थ है “अग्रसेन की संतान”। ओर माता लक्ष्मी महाराज अग्रसेन की कुल देवी थी इसी लिए माता लक्ष्मी अग्रवाल समाज की भी कुल देवी हुई । अग्रोहा धाम में माता लक्ष्मी का एक विशाल मंदिर भी बनाया गया है ।
अग्रवाल समाज की रचना / साढ़े सत्रह गोत्र रचना : महाराज
अग्रसेन के 18 पुत्र थे और उन्होने अपने राज्य को 18 गणो में विभाजित कर विशाल
राज्य की स्थापना की । महरीशि गर्ग ने राजा अग्रसेन से 18 गणाधिपतियों के साथ 18
महयज्ञ करने का संकल्प करवाया । और प्रथम यज्ञ के पुरोहित स्वयम बने और उन्होने
महाराजा अग्रसेन के जेयष्ट पुत्र विभु को दीक्षा प्रदान की और उन्हे गर्ग गोत्र से
अभिमत्रित किया और इसी प्रकार अग्रवंश (अग्रवाल समाज) के साढ़े स्तरह
गोत्रों की स्थापना हुई :
ऋषि का नाम –
गोत्र
1.
गर्ग – गर्ग
2.
गोभिल – गोयल
3.
गौतम – गोयन
4.
वत्स – बंसल
5.
कौशिक – कंसल
6.
शंदिल्या – सिंघल
7.
मुद्रगल- मंगल
8.
जैमिनी – जिंदल
9.
तंद्या- तींगल
10.
ओव्रा – एरण
12.
भारद्वाज – भंडल
13.
वशिष्ठ – बिंदल
14.
मैत्र्य – मित्तल
15.
कश्यप – कुछल
16.
तैतीरेय – तायल
17.
मुद्र्ल – मधुकुल
और इस प्रकार 17 यज्ञ पूर्ण हो गए लेकिन जब 18वें यज्ञ
पूर्ण होने की लिए पशु बलि देने लगे तो महाराजा अग्रसेन ने पशु बलि के लिए माना कर
दिया । लेकिन यज्ञचार्यों ने पशुबलि के बिना यज्ञ पूर्ण न होने की बात काही ।
लेकिन महाराज अग्रसेन पशुबलि के लिए राजी नही हुए ओर इस प्रकार 18वां
यज्ञ पूर्ण नहीं हो पाया । इस लिए इसे साढ़े सत्रह यज्ञ कहा जाता है ।
नजदीकी सम्बन्धों में विवाह न करने आज्ञा : उस समय विवाह केवल निकट के सम्बन्धों में
करने का प्रचलन था । लेकिन महाराज अग्रसेन ने इसे अनुचित माना और ऐसा न करने की
आज्ञा दी । उन्होने सगोत्र में अपने पुत्र – पुत्री का विवाह करने की मनाही की। और
इसी प्रथा को मानते हुए अग्रवाल समाज अपने पुत्र- पुत्री का विवाह सगोत्र में नही
करते ।
भारत सरकार के द्वारा सम्मान : राष्ट्रिय राजमार्ग- 10 का आधिकारिक नामकरण
महाराजा अग्रसेन के नाम पर किया गया । और महाराजा अग्रसेन के नाम से 24 सितंबर
1976 में डाक टिकट भी जारी किया । सन 1995 में कोरिया से खरीदे गए तेल वाहक विमान
का नामकरण भी महाराजा अग्रसेन के नाम से किया गया ।
महाराज अग्रसेन का अंतिम समय: महाराज अग्रसेन
ने लगभग 108 वर्षों तक राज किया और अपने अंतिम समय में वे अपना राजपाठ अपने जेयष्ट
पुत्र विभु को देकर वन में प्रस्थान कर गए ।
इसके साथ ही आप सभी को महाराजा अग्रसेन जयंती की हार्दिक शुभकामनाए l
प्रिय पाठको, यदि आपको ये जानकारी पसंद आई तो आप इसे आगे share करना न भूलें !
डिस्कलमेर : “इस लेख में दी गई जानकारी / सामाग्री / गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नही है । ये जानकारी विभिन माध्यमों से एकत्रित की गयी है जैसे की ज्योतिषियों / पंचांग / प्रवचनों / धर्म ग्रन्थो/ इंटरनेट आदि से । इस लेख का उदेश्य केवल सूचना पहुचना है, इसे उपयोगकर्ता केवल सूचना समझ कर ही ले । इसके अतिरिक्त इसके किसी भी उपयोग की ज़िम्मेदारी स्वयम उपयोगकर्ता की रहेगी
Nice information
ReplyDeleteNice information sir
ReplyDeleteSir aapka post copy karna chahti hun par ye copy nhi ho rha ...plz batiye ise copy kaise karun plz plZ
ReplyDeleteNice Post
ReplyDeleteMaharaj Agrasen ji ki jay
ReplyDeleteThanks for this information.... Really helpful many dobut has been cleared about maharaj agrasen ji's life
ReplyDeleteThanks for all valuable comments
ReplyDeleteFreiends
*Friends
DeleteNice information
ReplyDelete