आइये जानते हैं IPCC रिपोर्ट के बारे में, पर्यावरणीय राजनीति का भविष्य इसी रिपोर्ट से तय होता हैं IPCC Report 6th Assessment Report released in 2021
इंटर-गवर्नमेंट पैनल Intergovernmental Panel on Climate Change (IPCC) (आईपीसीसी) हर वर्ष एक जलवायु परिवर्तन रिपोर्ट जारी करता है ओर इसी रिपोर्ट को जलवायु परिवर्तन की सबसे बड़ी वैज्ञानिक मूल्यांकन रिपोर्ट के रूप में जाना जाता है। अब तक IPCC जलवायु परिवर्तन पर 05 रिपोर्ट्स जारी कर चुका है ओर इसी संदर्भ में इंटर- गवर्नमेंट पैनल यानि IPCC ने अपनी नयी रिपोर्ट यानि छटी रिपोर्ट बीते सोमवार को जारी की ये छटी रिपोर्ट का अभी एक भाग जारी हुआ हैं इसके अभी 02 ओर हिस्से जारी होने हैं जो अगले साल तक रिलीज किए जाएँगे छटी रिपोर्ट के पहले हिस्से में ही बहुत सारी जलवायु परीवर्तन संबंधी चेतावनिया दी गयी हैं ।
IPCC (Intergovernmental Panel on Climate Change): साल 1988 में संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यकरम ओर विश्व मौसम विज्ञान संगठन ने मिल कर IPCC का गठन किया । IPPC एक ऐसा संगठन है जो की स्वयम वैज्ञानिक अनुसंधान में हिस्सा नही लेता बल्कि विश्वभर के वैज्ञानिकों से जलवायु परिवर्तन से संबन्धित सभी जरूरी वैज्ञानिक जानकारी पढ़ने ओर तार्किक निष्कर्ष निकालने का अहवाहन करता है।
आईपीसीसी मूल्यांकन रिपोर्ट जलवायु परिवर्तन ने संबन्धित सबसे व्यापक ओर सबसे ज्यादा स्वीकृत की जाने वाली वैज्ञानिक रिपोर्ट है । इसी रिपोर्ट को विभिन्न देशों की सरकारें अपनी नीतियों का आधार बनाती हैं । ओर अंतर्राष्ट्रीय जलवायु परिवर्तन वार्ता के लिए भी यही रिपोर्ट आधार प्रदान करती है। इसी रिपोर्ट के आधार पर अंतर्राष्ट्रीय जलवायु परिवर्तन संबन्धित नीतियों का निर्माण किया जाता है ओर विभिन्न देशों की सरकारें जलवायु परिवर्तन से निपटान के लिए अपने एक्शन प्लान्स तैयार करती हैं ।
इस बार आईपीपीसी के द्वारा जारी हुई रिपोर्ट अनुसार भारत ओर उप महाद्वीपों के लिए दी गयी कुछ चेतावनियाँ निम्न अनुसार हैं :·
आईपीपीसी के अनुसार आने वाले कुछ दशकों में भारत ओर उप महाद्वीपों
में गर्मी बढ़ेगी परिणामस्वरूप सूखे की समस्या होगी , ओर कुछ
क्षेत्रों में बारिश की घटनाओं में वृद्धि होगी।
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चक्रवती गतिविधियां बढ़ेंगी
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2000-2050 के बीच पूरे महाद्वीप सतह पर अधिक दर से गर्मी बढ़ेगी
।
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ओर इसके साथ –साथ एशिया के आसपास हिन्द महासागर में सापेक्ष
समुद्र का स्तर वैश्विक ओसत की तुलना में तेजी से बढ्ने की आशंका है।
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फलस्वरूप तटीय क्षेत्रों में नुकसान होने की संभावनायेँ बढ़ेंगी
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ओर तटरेखा पीछे खिसकने की दर में भी वृद्धि होगी ।
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गर्मी कर स्तर निरंतर बढ़ता रहने की संभावनाएँ भी जाताई जा रही
हैं ।

Nice post
ReplyDeleteVery nice information
ReplyDeleteThanks for your valuable comments
ReplyDeleteThanx for sharing important information
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